Thursday, May 10, 2012

एक पैगाम ..तुम्हारे नाम






दिल की खुशियों में शरीक हो तुम ..
हर दर्द का मरहम हो तुम 
साधों को पंख मिले हैं तुमसे ..
सपनो को जीने की प्यास जगी है 
हौसले जिंदा हैं तुमसे..
उम्मीदें भी इसलिए सांस ले रही हैं कि तुम साथ हो .
               ...................
कांधों  पर जब तुम्हारा हाथ महसूस किया तो लगा सारा आसमान खुल गया है ...उड़ सकते हैं हम साथ साथ ...........................जब हाथ पकड़ा तुमने तो नंगे पाँव जलते मरुस्थल पार कर लिए .........................खुशियों के तिनके ऐसे बांटे जैसे खज़ाना बांटता हो कोई .साथ मिल के छोटी सी खुशी से भी कायनात भर दी ..एक बार नहीं जाने कितनी बार ....................................................
मेरे  दर्द के आँचल की कोर में जब तुमने अपने दर्द की कोर बांधी तो दर्द बढ़ा नहीं ..कितना हल्का हो गया ......
...............सुनो _____ यूँ ही साथ रहना हरदम  :)



15 comments:

  1. ओहो......जीवन के स्रोत कितने होते हैं, ये जीनेवाले को भी पता नहीं होता......कि जैसे तूलिका को नहीं पता होगा कि उनकी यह आवाज़ कितनों के लिए ऑक्सीजन जैसी होगी.......

    तीन-चार बार सुनने के बाद भी मैं सोच रहा हूँ कि आखिर यह आवाज़ कैसे निकली होगी ........कि आवाज़ के भी परदे होते हैं.......

    कि इस परदे में और कैसी-कैसी आवाज़ें होंगी..........

    ....यहाँ न तो हिम्मत है न हौसला न गुरूर न कुछ ऐसा कि उसकी आड़ में दर्द को भुलाया जा सके.........

    यहाँ पैर के पंजों के बल चलती हुई एक स्त्री का संतुलन है......और उसके हाथ में एक लंबा सा बांस का डंडा है.......जिसे वो दोस्त कहती है............

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    1. जीने के इशारे ..ज़िंदा रहने की वजहें ...और जीवन के स्रोत , मालूम नहीं होता कि कहाँ हैं ...कभी अलग होते हैं ये तो अचानक समझ में आता है कि रोशनी कहाँ से आ रही थी ...ये वही महसूस कर सकता है जिसने अंधेरों को जिया ..भोगा है...और फिर बाहर निकाला गया है ...........और हाँ दोस्त ! इस आवाज़ में मेरा कुछ नही नहीं है ....कोई और है जो सांस लेता है मेरी आवाज़ में ..ये उसी का नूर है ......
      ये जो पैर के पंजों के बल चलती हुई एक स्त्री का संतुलन है न ..ये उसका भरोसा है उस बाँस के डंडे पर ....हाथ से डंडा खींच कर देखो ..गिर जायेगी वो :)
      इस बाँस के डंडे पर न आंधी पानी का कोई असर नहीं होता ...जीवन में बांसुरी भी बजाता है ये बाँस और अर्थी तक साथ भी देता है ...मानो तो सब कुछ ..न मानो तो कुछ नहीं :)

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  2. अहा !! शब्दों की तरह आवाज़ में भी मखमली और मोहक अंदाज़ ...
    मैंने आपको पहली बार सुना दोस्त !!शुक्रिया ...

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    1. दोस्ती में शुक्रिया की गुंजाइश नहीं होती ..वैसे उम्मीद है कि आप सुनते रहेंगे :)

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  3. तूलिका ! तुझे तो पता भी नहीं होगा गुडिया ,कैसी खनक ,कैसी धनक भरी है ,इस बार तुम्हारी आवाज़ ने ....और किस तरह सिखाया,दर्द के साथ जीते हुए ,ज़िन्दगी को वेलकम कहना ,और एक उम्मीद से अपनी आँख खोल देना ,,और सुनना चहकती चिड़िया को !मेरे लिए तो यह व्यक्तिगत उपहार है ....कुछ दिन से मन पर परतों में जमते आ रहे अवसाद को ..........धो दिया तुमने |आई फील ब्लेस्ड |

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    1. भैया! दोस्ती ठन्डे पानी की वही फ़ुहार होती है जो छन्न से पड़ती है तपते मन पर ....वैसे मेरी चकचक-बकबक में नया कुछ नहीं है ..पर लगता है आपने नया ईयरफोन ले लिया है ..तभी खनक धनक सुनाई दी आपको बैकग्राउंड म्युज़िक की :)

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  4. आपकी मधुर वाणी शब्दों का सार ही बदल देते हैं..!!

    हार्दिक शुभकामनायें..!!

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    1. बहुत शुक्रिया प्रियंका :)

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  5. यूँ ही आवाज़ की खूबसूरती बिखेरती रहिए...हम यूँ ही साथ चलते रहेंगे..:)

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  6. अक्सर,ब्लॉग जगत की कवियित्रियां जीवन की कड़वाहट ही बांटती दिखती हैं। उनके पास सुखद स्मृतियां हैं भी तो बीते समय की ही। असली बात है वर्तमान। जो उसे जिएगा,वही प्रेम का रसास्वादन करेगा,आनंदित होगा- आपकी तरह!

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  7. रचना और आवाज प्रभावशाली हैं ...
    शुभकामनायें आपको !

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  8. बेहद सुन्दर भाव पूर्ण मन की जीवंत प्रेरणादायी आवाज.....शुभ कामनाएं

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  9. वाह आपकी आवाज बहुत अच्छी है. सुनकर बहुत अच्छा लगा. शुभकामनायें.

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  10. कांधों पर जब तुम्हारा हाथ महसूस किया
    तो लगा सारा आसमान खुल गया है ...
    उड़ सकते हैं हम साथ साथ
    ...........................
    जब हाथ पकड़ा तुमने
    तो नंगे पाँव जलते मरुस्थल पार कर लिए

    वाह! बहुत सुंदर
    तूलिका जी !

    बेहतरीन !
    ख़ूबसूरत आवाज़ ! ख़ूबसूरत शब्द !
    वाऽह ! क्या बात है !

    सार्थक रचना !
    पूरी रचना का आनंद सुन कर ही लिया जा सका
    … … … में छुपे शब्द आपके स्वर में सुनना बहुत अच्छा लगा
    :)

    …आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
    शुभकामनाओं सहित…

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