Sunday, September 28, 2014

मन के पन्ने

बरसों से उसने किसी को ख़त नहीं लिखा था ...लिखने का उतावलापन भी नहीं दिखा कभी ....लेकिन हर पल ..हर लम्हा ... ख़तों की स्क्रिप्ट्स ज़ेहन में लिखी जाती रहीं ...सहेजी जाती रहीं 
          कभी लिखे ही नहीं गए जो ...उन ख़तों को मंजिल तक पहुंचाने की कोई जल्दी भी नहीं थी उसे ....पर उसके इंतज़ार को एक भरोसा ज़रूर था ....एक ऐसा भरोसा ...जिस पर उम्र भर ख़त लिखे जा सकते थे ....उसका लिखना ....उसका प्रेम करना था ..अक्षरों के बिना, भावों के बिना ....दम घुटता था उसका ...प्रेम जीती थी वो ....
             हर्फ़ों को कभी काग़ज़ पर नहीं उतारा ....यूँ कहें कि उसकी कलम और उसके काग़ज़ को साथ नसीब नहीं हुआ ...शायद इसे ही वो प्रेम का नसीब में न होना मानती रही .......डायरी और कलम हमेशा रहते थे उसके बैग में .............मगर डायरी के पन्ने कोरे बने रहे ....मन के पन्ने भरती रही वो .....हाँ ! वही !!....उदास है आज .....आज उसे लग रहा है कि उसकी कलम स्मूद नहीं चल रही .....कलम के रुक रुक कर चलने से न जाने क्यूँ घुटन होती है उसे ...जैसे ख़त के लिखे जाने का दिन थोड़ा और दूर हो गया हो ..........
             
                  बिना लिखे .....बेनाम से इन ख़तों के साथ जाने कैसा रिश्ता निभा रही थी वो ....जाने कब से लिख रही थी वो ......
लिखते जाने की मियाद भी ख़त्म नहीं होती कभी ....क्योंकि प्रेम भी ख़त्म नहीं होता कभी !!!


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Saturday, February 23, 2013

इंतज़ार..उम्र भर



जाने की ज़िद में वो चलता गया ...और बहुत दूर चला गया ...पीछे छूट जाने वाले ने भी एक ज़िद पाली थी ...जाने वाला जितना दूर जाता रहा उसे उतना करीब महसूस करने की .........दोनों अकेले हो गए, एकदम अकेले ...जाने वाला दुनिया की भीड़ में अकेला था ..और पीछे रह जाने वाला.. यादों की भीड़ में .....
   एक और ज़िद थी दोनों की..किसी और को करीब न आने देने की ज़िद .....ये मुहब्बत की ज़िद थी ..
दोनों चलते रहे विपरीत दिशाओं में ....एक अदृश्य रेशमी डोर से बंधे ..न रुके ..न थके ....यूँ मुहब्बत भी न रुकती है ..न थकती है ...
       कोई कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ....अचानक धरती के दूसरे छोर पर, दोनों एक दूसरे के सामने थे ..पर नितांत अजनबी ...वक्त ने चेहरे पैर झुर्रियां डाली थीं पर दर्द बूढा नहीं हुआ था ...अलबत्ता बरफ़ हो गया था ...आहिस्ता आहिस्ता पिघलता ..और पूरे वजूद को नम करता हुआ ....
                       दोनों ने एक दूसरे की आँखों को उँगलियों की पोरों से टटोला था ...और पहली बार महसूस किया था.. आँखों की नमी के नमक का ..मीठा हो जाना .....
                       दोनों ने पूरी उमर मुहब्बत का रेशम बुना था  ..और उसी रेशम से नापा था.. दर्द के हर मरहले को ....आज ..जब पूरी कायनात को ताज़िन्दगी उस रेशम में पिरोते हुए ..दोनों अपने अपने सिरे लेकर साथ खड़े थे, तो बाकी नहीं बचा था इतना रेशम.. कि बाँध लेते अपने हिस्से की डोर में ..एक गाँठ भी...
........काश !!  दुनिया थोड़ी सी सिकुड़ जाती ..और वो पकड़ पाते ..एक दूसरे की रेशमी डोर के सिरे ......


   

Thursday, May 10, 2012

एक पैगाम ..तुम्हारे नाम






दिल की खुशियों में शरीक हो तुम ..
हर दर्द का मरहम हो तुम 
साधों को पंख मिले हैं तुमसे ..
सपनो को जीने की प्यास जगी है 
हौसले जिंदा हैं तुमसे..
उम्मीदें भी इसलिए सांस ले रही हैं कि तुम साथ हो .
               ...................
कांधों  पर जब तुम्हारा हाथ महसूस किया तो लगा सारा आसमान खुल गया है ...उड़ सकते हैं हम साथ साथ ...........................जब हाथ पकड़ा तुमने तो नंगे पाँव जलते मरुस्थल पार कर लिए .........................खुशियों के तिनके ऐसे बांटे जैसे खज़ाना बांटता हो कोई .साथ मिल के छोटी सी खुशी से भी कायनात भर दी ..एक बार नहीं जाने कितनी बार ....................................................
मेरे  दर्द के आँचल की कोर में जब तुमने अपने दर्द की कोर बांधी तो दर्द बढ़ा नहीं ..कितना हल्का हो गया ......
...............सुनो _____ यूँ ही साथ रहना हरदम  :)



Tuesday, April 24, 2012

याद के टापू




रोज़ हर रोज़ ..बेनाम पते पर खत डाले ..सोचा, मज़मून अपनी शिद्दत की वजह से मंज़िलों तक पहुँच जाएगा ...पर, सोचा हुआ सच होता है कभी ...रूह की चिट्ठी पर तो साफ़ साफ़ लिख दिया उसका पता ...गहरे अक्षरों से खोदकर ...लेकिन मंज़िलें रवाना हो गयीं पता बताए बगैर ....रूह की चिट्ठी कहाँ डालती ...रख ली अपने पास ..........................................................
बरस बीते, जुग बीते ....दरिया बूढ़ा नहीं हुआ ...अलबत्ता याद के टापू उग आए उसके बीच ....किनारों ने कितने ही अफ़साने दरिया के पानियों पर लिख कर बहा दिए ...पर वो, समंदर तक पहुंचे ही नहीं ..............................................
कभी तो कोई बीज ...कोई अफ़साना..समंदर तक पहुंचेगा ....उगेगा साहिलों पर ....छू लेगा उस किनारे का पांव ...जिसे पुल बनाकर छुआ नहीं जा सका ...


Monday, April 9, 2012

यादों के पोस्टर




"वही रास्ते ...वही रहगुज़र ...वही मरहले ..वही कारवां .......
वही मोड थे ...कुछ खड़े हुए ...वही मुन्तजिर सी मेरी नज़र 
थे उसी मुकाम पे कदम मेरे...जहां खो गए थे तुम कभी............."

उन सब दोस्तों के नाम ...मेरा पैगाम 
जो आज साथ नहीं हैं .....

जाने  कितने लम्हे समेट लाई हूँ अपनी बाँहों में ...
सबको  सहलाऊंगी..स्पर्श से जिलाऊंगी ...
इसी  बहाने जी जाऊं, शायद !