Saturday, February 23, 2013
इंतज़ार..उम्र भर
जाने की ज़िद में वो चलता गया ...और बहुत दूर चला गया ...पीछे छूट जाने वाले ने भी एक ज़िद पाली थी ...जाने वाला जितना दूर जाता रहा उसे उतना करीब महसूस करने की .........दोनों अकेले हो गए, एकदम अकेले ...जाने वाला दुनिया की भीड़ में अकेला था ..और पीछे रह जाने वाला.. यादों की भीड़ में .....
एक और ज़िद थी दोनों की..किसी और को करीब न आने देने की ज़िद .....ये मुहब्बत की ज़िद थी ..
दोनों चलते रहे विपरीत दिशाओं में ....एक अदृश्य रेशमी डोर से बंधे ..न रुके ..न थके ....यूँ मुहब्बत भी न रुकती है ..न थकती है ...
कोई कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ....अचानक धरती के दूसरे छोर पर, दोनों एक दूसरे के सामने थे ..पर नितांत अजनबी ...वक्त ने चेहरे पैर झुर्रियां डाली थीं पर दर्द बूढा नहीं हुआ था ...अलबत्ता बरफ़ हो गया था ...आहिस्ता आहिस्ता पिघलता ..और पूरे वजूद को नम करता हुआ ....
दोनों ने एक दूसरे की आँखों को उँगलियों की पोरों से टटोला था ...और पहली बार महसूस किया था.. आँखों की नमी के नमक का ..मीठा हो जाना .....
दोनों ने पूरी उमर मुहब्बत का रेशम बुना था ..और उसी रेशम से नापा था.. दर्द के हर मरहले को ....आज ..जब पूरी कायनात को ताज़िन्दगी उस रेशम में पिरोते हुए ..दोनों अपने अपने सिरे लेकर साथ खड़े थे, तो बाकी नहीं बचा था इतना रेशम.. कि बाँध लेते अपने हिस्से की डोर में ..एक गाँठ भी...
........काश !! दुनिया थोड़ी सी सिकुड़ जाती ..और वो पकड़ पाते ..एक दूसरे की रेशमी डोर के सिरे ......
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वाह.....
ReplyDeleteअच्छे भले इंसान को प्यार हो जाए इस पोस्ट को पढ़/सुन कर....
<3
जियो तूलिका..
अनु
आह मन बाँध लिया ..बगैर कोई धागे के ही बेहद खूबसूरत !
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी.. :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से पिरोया है अहसास को...वाह..
ReplyDeleteआहा ! इतना दारुण ..... इतना मार्मिक ..... इतना हृदय विदारक केवल तुम ही लिख सकतीं थीं ...
ReplyDeleteसच ! कैसा तो बंधन है प्रेम का .... कैसा सम्मोहन ..... कैसी तो पीड़ा !
जाने वाला जा कर भी पीछे ही रह जाता है ...... और पीछे छूटा हुआ लाख हाथ छुड़ाने पर भी अकेला नहीं होता .... तमाम यादें हर पल उसके साथ ही रहतीं हैं !
सच कहती हो तुम ....... जिया भोगा सत्य है ... " कोई कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ..."
अजो नित्यः शाश्वतोsयम पुराणों
न हन्यते हन्यमाने शरीरे !
दर्द की क़ैफ़ियत ही है कि दर्द कभी बूढ़ा नहीं होता ....अलबत्ता बर्फ़ ज़रूर हो जाता है !....
और फिर कहीं उसी उष्मा का आभास मिले .... तो पिघलता है बूँद-बूँद , क़तरा-क़तरा ..... नम कर देता है पोर-पोर , अंतस तक को ......
बड़े भाग्यवाले होते हैं वो .... जो किसी के नाम का रेशम बुन पाते हैं .... जो दिल की तकली पर मोहब्बत कातते हैं !.....
जो सारी सृष्टि को .... सारे कायनात को ..... और कायनात ही क्यों वो तो ईश्वर तक को ; अपने बुने हुए रेशम में पिरो कर रख देते हैं किसी के चरणों में .... और अपने लिए एक सिरा तक नहीं बचाते की एक गाँठ ही लगा पाएँ ....
इस अपने लिए कुछ न रखने में ....... इस छोड़ देने में ..... इस हार जाने में जो सुख है .... उसे, जिसने खारे आँसुओं का मीठापन चखा है ना .... वही जान सकता है !
जिसके शीरी सी आवाज़ के लिए आवाज़ के बादशाह हुसैन बंधू खुद कह गए हों .......
अपनी आवाज़ में दुनिया को डुबो दूँ लेकिन,
तुमसे मिलती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ ?
उसके लिए मेरा कुछ कहना ... बस गूंगे का अपने मुँह से, शहद का स्वाद बताने सा होगा !
कोई कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ....! sachmuch
ReplyDelete<3 loved it...aazing <3 <3
ReplyDeleteआहा..बहुत मीठा, हर बार की तरह..आपका हर दर्द जैसे अन्दर गहराता जाता है..!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शब्द और आवाज़ दोनों..!!
जितनी बार सुनूँ..एकदम नया लगता है..
ReplyDeleteजाने कैसा दर्द है..बहुत अपना लगता है..!!
मखमल की आवाज़ पर..गम के फ़ाहे..ख़ूबसूरत.. :-)